अक्स

तुम मुझे जानते हो क्या ?
मेरी छोड़ों खुद को पहचानते हो क्या ?

हर रोज उठते हो,
खाने को है,
पीने को है,
मोबाइल फोन है,
फोन में हज़ारो दोस्त हैं,
फिर भी दिल से मुस्कराते हो क्या ?

हर रोज कहीं जाते हो,
तुम उसे जेल कहते हो,
पर जेल में तो कैदियों को रखते हैं,
तुम आज़ाद होकर भी हर दिन खुद को वहाँ भेजते हो,
बताओ खुद को कैदी मानते हो क्या ?

कैदी मानते हो तो कोई बात नहीं,
चलो गुनाह तो बता दो मुझे,
मन की ना सुनना कहीं ये गुनाह तो नहीं,
आज मन की सुनो, चलो बता दो मुझे, मन की सुनते नहीं, कुछ बोलते भी नहीं,
किसी से डरते हो क्या ?

डरते हो तो भी बता दो मुझे,
किसी गैर को ना सही, खुद को तो बता ही सकते हो,
मैं अक्स हूँ तुम्हारा, हसूँगा नहीं,
तुम्हें मुस्कुराना सिखाऊंगा,
 भरोसा करते हो क्या ?

– अक्स

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