नींद

नींद 
रोज़ रात को आती है ,
बाहों में मुझे भींच कर ,
और सुबह चली जाती है।

हाँ वो नींद ही है ,
जो कल की थकावट को रौंद  कर,
कल के गीले शिकवे को निचोड़ कर ,
आअज के लिए नयी उम्मीद को उकेरती है।,
नयी उमंगो को जन्म देती है। 

हाँ वो नींद ही है ,
जो हमेशा दुत्कारती है। 

रोज़ रात को आती है ,
बाहों मि मुझे भींच कर ,
और सुबह चली जाती है। 

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