कहानी रूह की ज़ुबानी !
बरस गए बादल , धुप हुई छाँव ,
न रहा वो सहर अपना न ही वो गांव।
जब सोया था , न थी आहात धड़कन में ,
सपनो ने भी दस्तक न दी ,पलकों में।
जो था कभी अपना , वो आज न रहा मेरा ,
वक़्त भी थम गया , न रात हुई न सवेरा।
अरसा हो गया सांस लिए ,
खुशबू उन हवाओं की भी जाने खा गुम गए।
रोने को न आंसू बचे , न ही हसने की कोई वजह ,
यादे भी गुम हुई ,मिला हिअ जैसे कोई सजा।
न रहा वो सहर अपना न ही वो गांव।